Rishikesh : केजरीवाल ( Kejrival ) ने दिल्ली को लंदन बनाने का वादा किया था, लेकिन दिल्ली (Delhi) की पहचान बन चुके कूड़े के पहाड़ों ने उनकी सच्चाई उजागर कर दी। हालांकि, यह स्थिति केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रही। अब उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में भी यही कहानी दोहराई जा रही है।
ऋषिकेश ( Rishikesh ), जो योग और अध्यात्म का वैश्विक केंद्र है, अब धीरे-धीरे कूड़े और प्रदूषण का पर्याय बनता जा रहा है। दिल्ली की तर्ज पर यहां कूड़े का एक बड़ा पहाड़ बन चुका है, जो शहर की स्वच्छता और प्रशासन की नीतियों पर सवाल खड़े करता है।
ऋषिकेश ( Rishikesh ) में गंगा नदी से मात्र 70 मीटर की दूरी पर स्थित 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़ अब स्थानीय निवासियों और पर्यटकों ( Tourists ) के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है. इस पहाड़ में सैकड़ों टन कचरा ( garbage ) इकट्ठा हो चुका है. ऋषिकेश,( Rishikesh ) जहां लोग शांति और प्रकृति का अनुभव करने आते हैं, अब कूड़े ( garbage ) के ढेर के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है. पिछले 22 वर्षों में यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, और इसके समाधान के प्रयास न के बराबर रहे हैं.
ऋषिकेश ( Rishikesh )आध्यात्मिकता से कचरे तक का सफर
ऋषिकेश हमेशा से अपनी प्राकृतिक सुंदरता, पवित्र गंगा, और अध्यात्मिक ऊर्जा के लिए जाना जाता है। यहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं। लेकिन बढ़ती आबादी, अनियंत्रित पर्यटन, और ठोस कचरा प्रबंधन की कमी ने इस पवित्र स्थल को संकट में डाल दिया है।
कूड़े के पहाड़ न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, बल्कि स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल रहे हैं। इनसे निकलने वाली जहरीली गैसें और दुर्गंध ने शहर की हवा को दूषित कर दिया है। ऋषिकेश के निवासी अब स्वच्छ हवा में सांस लेने के बजाय जहरीली गैसों से जूझ रहे हैं।
प्रशासन की नाकामी
इस समस्या का मुख्य कारण प्रशासन की लापरवाही और ठोस कचरा प्रबंधन की असफलता है। दिल्ली की तर्ज पर ऋषिकेश में भी कूड़े के पहाड़ का बनना यह दर्शाता है कि स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के वादे केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं।
स्थानीय प्रशासन को चाहिए था कि वह ठोस कचरा प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों को अपनाए। लेकिन दुर्भाग्य से, न तो कूड़े को रीसायकल करने की कोई ठोस योजना बनाई गई और न ही इसके निपटारे के लिए स्थायी समाधान खोजा गया।
क्या हो सकते हैं समाधान?
ऋषिकेश ( Rishikesh ) जैसे पवित्र स्थान को इस संकट से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
कचरे का वैज्ञानिक निपटान ( Scientific Disposal of Waste ) : ठोस कचरे को रीसायकल करने और उसे ऊर्जा में बदलने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करना जरूरी है।
जनजागरूकता ( public awareness ) : स्थानीय निवासियों और पर्यटकों को कचरा फैलाने से रोकने के लिए जागरूक करना।
कचरा प्रबंधन नीति ( Waste Management Policy ) : एक सख्त नीति बनानी होगी, जिसमें कचरे के संग्रहण और निपटान के लिए बेहतर प्रबंधन हो।
स्वच्छता अभियान ( Cleanliness drive ) : “स्वच्छ भारत अभियान” जैसी मुहिम को और अधिक प्रभावी तरीके से लागू करना।
ऋषिकेश को कूड़े के पहाड़ों से बचाना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यहां के निवासियों और पर्यटकों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। यदि आज इस समस्या को नजरअंदाज किया गया, तो ऋषिकेश अपनी पवित्रता और प्राकृतिक सुंदरता को खो देगा।
केजरीवाल दिल्ली ( Kejriwal Delhi ) को लंदन बनाने में भले ही असफल रहे हों, लेकिन उत्तराखंड सरकार ( Uttarakhand Government ) ने ऋषिकेश को “कूड़े का पहाड़” बनाने में जरूर योगदान दे दिया है। अब समय आ गया है कि लोग और प्रशासन मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और ऋषिकेश को फिर से स्वच्छ और पवित्र बनाएं।