देहरादून। एक तरफ प्रदेश के पशुपालन मंत्री उत्तराखंड में पशुओं की बेहतर देखरेख के लिए योजनाएं और व्यवस्थाएं लागू कर रहे हैं, वहीं राजधानी देहरादून में पशु कल्याण को लेकर जमीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है। ताजा मामला धोरण खास, नियर बीमा विहार का है, जहां एक गाय का नवजात बछड़ा तीन दिनों तक बगीचे में सड़ता रहा, लेकिन न तो डेयरी संचालकों ने उसकी सुध ली और न ही दफनाने की कोई जिम्मेदारी उठाई।
स्थानीय लोगों की शिकायत पर बीजेपी के मीडिया प्रभारी अनिल यादव मौके पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि गाय का बछड़ा तीन दिन से खुले में पड़ा था और किसी भी तरह से ढका नहीं गया था, जिससे दुर्गंध फैल रही थी और आसपास के लोगों को परेशानी हो रही थी।
डेयरी मालिक ने मानी गलती
स्थानीय टीम जब मौके पर पहुंची और डेयरी मालिक से बातचीत की तो उसने अपनी गलती स्वीकार करते हुए भविष्य में लापरवाही न दोहराने का वादा किया। अनिल यादव ने जानकारी दी कि स्थानीय टीम के सदस्यों ने ही मौके पर डेयरी वालों से बछड़े के शव को खुद मिट्टी में दबवाया, ताकि आसपास के पर्यावरण और लोगों को राहत मिल सके।
लापरवाही या संवेदनहीनता?
यह मामला सिर्फ एक लापरवाही नहीं, बल्कि बेजुबान पशुओं के प्रति संवेदनहीनता का उदाहरण है। सवाल यह उठता है कि जब राजधानी देहरादून में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, तो फिर अन्य जिलों में क्या हाल होंगे? क्या केवल योजनाएं और घोषणाएं ही काफी हैं, जब तक जिम्मेदार लोग जमीन पर अपनी भूमिका निभाने को तैयार नहीं होते?
मीडिया प्रभारी अनिल यादव ने कही अहम बात
अनिल यादव ने अपील करते हुए कहा: “पशु भी हमारे परिवार का हिस्सा हैं। जब वे बीमार या मृत हो जाएं, तो हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दें। इस तरह खुले में फेंकने से न केवल मानवीय संवेदनाओं को ठेस पहुंचती है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी खतरा उत्पन्न होता है।”
अब जिम्मेदारी प्रशासन की है कि वह ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करे और पशु कल्याण की नीतियों को धरातल पर उतारे।