जयपुर, 12 नवंबर 2024: राजधानी जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में बालाजी गोशाला संस्थान सालासर और विद्याधर नगर स्टेडियम आयोजन समिति द्वारा आयोजित रामकथा के दौरान जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने एक बड़ा बयान दिया। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, “रामलला को ला सकते हैं तो मथुरा और काशी के ज्ञानवापी को भी लाकर दिखाएंगे।” उनका यह बयान देश की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को लेकर एक अहम संदेश था।
स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि देश के लिए चिंतित रहने का काम केवल संत ही कर सकते हैं, न कि परिवार से जुड़े भक्त। उन्होंने रेवासा पीठ के मुद्दे पर भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि रेवासा में जो कुछ हुआ, वह परंपराओं के खिलाफ था और उसे कभी होने नहीं दिया जाएगा। उनका यह बयान धार्मिक और सामाजिक परंपराओं की रक्षा के प्रति उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
रामकथा के दौरान स्वामी रामभद्राचार्य ने भगवान राम के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का भी उल्लेख किया। उन्होंने ताड़का वध और राम विवाह के प्रसंग सुनाते हुए कहा, “भगवान राम ने विश्वामित्र के साथ अयोध्या से वन यात्रा की, और इस दौरान उन्होंने ताड़का का वध किया। ताड़का ने भगवान राम के सामने उनकी महिमा का बखान किया, लेकिन राम जैसे राजा और त्यागी का उदाहरण कहीं नहीं मिलता।” इसके बाद उन्होंने लक्ष्मण और परशुराम के संवाद, तथा सीता-राम के विवाह के प्रसंग भी सुनाए। उन्होंने एक भजन भी प्रस्तुत किया, जिसमें ‘राजे भी देखे, महाराजे भी देखे, मेरे राम जैसा कोई राजा न देखा’ को पेश किया।
कार्यक्रम के संयोजक राजन शर्मा और आयोजन समिति के सचिव अनिल संत ने बताया कि कथा के बाद भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें भजन गायक लखबीर सिंह लक्खा समेत मुंबई और कोलकाता के गायकों ने भजनों की प्रस्तुतियां दी। गोशाला संस्थान के अध्यक्ष रवि शंकर पुजारी, मुकेश गोयल, आलोक अग्रवाल, सुखलाल जैसनसरिया, अवंत जैन, रामावतार खंडेलवाल, संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल, आरएएस पंकज ओझा और अन्य ने भी आरती की।
स्वामी रामभद्राचार्य ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि वह अब हर साल जयपुर आएंगे, क्योंकि इस शहर से उनका गहरा जुड़ाव है। उन्होंने कहा, “मैं कठोर कहने में बदनाम हूं, लेकिन किसी संत को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इस बार कुंभ में हम कुछ ऐसा करेंगे कि पाकिस्तान का नामो-निशान मिट जाएगा। यह देश गांधी परिवार का नहीं है, यह राष्ट्र हमारा है, सनातनियों का है।”
स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी घोषणा की कि वह 6 दिसंबर को चित्रकूट धाम में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करेंगे, जहां लोग आकर देख सकते हैं कि देश की संस्कृति कैसे स्थापित की जाती है। इसके साथ ही उन्होंने गो हत्या पर भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वह इसे बंद करवाकर रहेंगे और हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की दिशा में काम करेंगे।
स्वामी रामभद्राचार्य का यह बयान एक मजबूत सांस्कृतिक और धार्मिक पुनर्निर्माण का संकेत है, जो देश के भविष्य और उसकी प्राचीन धरोहर को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्धता दर्शाता है।