ISIS-K: क्या है आईएस खोरासान, जिसने रूस में घुसकर आतंकी हमले में ले ली 62 लोगों की जान, जानें कितना खतरनाक

ISIS-K : रूस की राजधानी मॉस्को के एक कॉन्सर्ट हॉल में गोलीबारी की घटना में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट-खोरासान ने हमले की जिम्मेदारी ली है।

रूस की राजधानी मॉस्को में शुक्रवार शाम एक कॉन्सर्ट हॉल में हमला हुआ। यहां पहले कुछ धमाकों के बाद जबरदस्त गोलीबारी हुई। इस घटना में अब तक 60 से ज्यादा लोगों की जान जाने की बात सामने आई है। वहीं, करीब 145 लोग घायल हुए हैं। अमेरिका के व्हाइट हाउस की प्रवक्ता ने कहा कि इन बम धमाकों के के पीछे आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट)- खोरासान का हाथ होने की बात सामने आई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाल ही में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी जारी की थी कि आईएस के आतंकवादी रूस पर हमले की साजिश रच रहे हैं। व्हाइट हाउस के मुताबिक, इसे लेकर उसने जिम्मेदारी निभाते हुए अपने नागरिकों और रूस के अधिकारियों को चेतावनी जारी की थी। हालांकि इसके बावजूद आईएस-खोरासान ने इस हमले को अंजाम दिया।

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कब बना आईएस-खोरासान?
1999 में स्थापित हुए आईएस को दुनिया ने 2014 के बाद से ही जानना शुरू किया। इससे पहले सीरिया, इराक या बाकी दूसरे देशों में इसका प्रभाव नहीं था।आईएस- खोरासान (ISIS-K), आईएस की ही एक शाखा है जिसे जनवरी 2015 में तालिबान के पाकिस्तानी सहयोगी के असंतुष्ट सदस्यों द्वारा स्थापित किया गया था, इसे तालिबान और अमेरिका का कट्टर दुश्मन माना जाता है। खोरासान शब्द एक प्राचीन इलाके के नाम पर आधारित है, जिसमें कभी उज्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और इराक का हिस्सा शामिल हुआ करता था। वर्तमान में यह अफगानिस्तान व सीरिया के बीच का हिस्सा है।
आईएस के खोरासान मॉड्यूल को ‘खोरासान ग्रुप’ के नाम से भी जाना जाता है। इस ग्रुप में अलग विचारधारा रखने वाले आतंकी संगठन अलकायदा से जुड़े लोग शामिल हैं। इस ग्रुप को मुख्य तौर पर सीरिया, खोरासान से चलाया जाता है।

आईएस (ISIS) की नींव 2006 में बगदादी ने रखी थी। एक लंबी लड़ाई के बाद अमेरिका इराक को सद्दाम हुसैन के चंगुल से आजाद करा चुका था। पर इस आजादी को हासिल करने के दौरान इराक पूरी तरह बर्बाद हो चुका था। अमेरिकी सेना के इराक छोड़ते ही बहुत से छोटे-मोटे गुट अपनी ताकत की लड़ाई शुरू करने लगे। उन्हीं में से एक गुट का नेता था अबू बकर अल बगदादी, अल-कायदा इराक का प्रमुख।वो 2006 से ही इराक में अपनी जमीन तैयार करने में लगा था, लेकिन तब ना उसके पास पैसे थे, ना कोई मदद और ना ही लड़ाके।

दरअसल, अमेरिकी सेना 2011 में जब इराक से लौटी, तब तक वो इराकी सरकार को बर्बाद कर चुकी थी। सद्दाम मारा जा चुका था। इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से तबाह हो चुके थे और सबसे बड़ी बात ये कि वो इराक में खाली सत्ता छोड़ गए थे। संसाधनों की कमी के चलते तब बगदादी ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा था। हालांकि इराक पर कब्जे के लिए तब तक उसने अल-कायदा इराक का नाम बदल कर नया नाम आईएसआई यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक रख लिया था।
बगदादी ने सद्दाम हुसैन की सेना के कमांडर और सिपाहियों को अपने साथ मिला लिया. इसके बाद उसने शुरुआती निशाना पुलिस, सेना के दफ्तर, चेकप्वाइंट्स और रिक्रूटिंग स्टेशंस को बनाना शुरू किया। अब तक बगदादी के साथ कई हजार लोग शामिल हो चुके थे, पर फिर भी बगदादी को इराक में वो कामयाबी नहीं मिल रही थी। इराक से मायूस होकर बगदादी ने सीरिया का रुख करने का फैसला किया। सीरिया तब गृह युद्ध झेल रहा था। अल-कायदा और फ्री सीरियन आर्मी वहां के दो सबसे बड़े गुट थे।

पहले चार साल तक सीरिया में भी बगदादी को कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उसने एक बार फिर से अपने संगठन का नाम बदल कर आईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) कर दिया। जून 2013 को फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने पहली बार सामने आकर दुनिया से अपील की थी कि अगर उन्हें हथियार नहीं मिले तो वो बागियों से अपनी जंग एक महीने के भीतर हार जाएंगे। इस अपील के हफ्ते भर के अंदर ही अमेरिका, इस्राइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथियार, पैसे, और ट्रेनिंग की मदद देनी शुरू कर दी थी। इन देशों ने सारे आधुनिक हथियार, एंटी टैंक मिसाइल, गोला-बारूद सब कुछ सीरिया पहुंचा दिया और बस यहीं से आईएस के दिन पलट गए। दरअसल जो हथियार फ्री सीरियन आर्मी के लिए थे, वो साल भर के अंदर आईएस तक जा पहुंचे क्योंकि तब तक आईएस फ्री सीरियन आर्मी में सेंध लगा चुका था। साथ ही सीरिया में फ्रीडम फाइटर का नकाब पहन कर भी आईएस ने दुनिया को धोखा दिया। इसी नकाब की आड़ में खुद अमेरिका तक ने अनजाने में आईएस के आतंकवादियों को ट्रेनिंग दे डाली।

आईएस- खोरासान ने पहले भी किए हैं कई आतंकी हमले
आईएस-खोरासान ने पहले भी अफगानिस्तान में कई आतंकी हमले किए हैं। 2021 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपने सैनिकों को निकालने का फैसला किया, तब काबुल एयरपोर्ट के बाहर दो आत्मघाती हमले हुए थे। इन हमलों में अमेरिकी मरीन कमांडो समेत कम से कम 60 लोगों की मौत हुई थी। पांच अमेरिकी सैनिकों समेत 100 से ज्यादा लोगों के घायल हुए थे।
इस आतंकी संगठन ने मई में काबुल में लड़कियों के एक स्कूल पर हुए घातक विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 68 लोग मारे और 165 घायल हो गए थे। आईएस-खोरासान ने जून में ब्रिटिश-अमेरिकी हालो (HALO) ट्रस्ट पर भी हमला किया था, जिसमें 10 लोग मारे और 16 अन्य घायल हो गए थे।

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